दुर्गावती की अमर कहानी
गढ़ मंडला राज्य की रानी,
नाम दुर्गावती वीर मर्दानी।
निर्भीक बहादुर वीरांगना थी,
जबलपुर था उसकी राजधानी।।
बॉदा नरेश कीर्तिसिंह चंदेल की,
इकलौती बेटी दुर्गा रानी।
जन्माष्टमी को जन्मी वह,
गौरव पूर्ण है अमर कहानी।।
कालिंजर किले में सीखा,
तलवार, तीर की अचूक निशानी।
तेज, शौर्य और सुन्दरता के,
चर्चें फैले ज्यो हुई उमर स्यानी।।
गोड़वाना के राजा संग्राम शाह ने,
पुत्र दलपत संग ब्याह रचाया ।
पुत्रवधू बनाया दुर्गावती को,
जात पात का भेद मिटाया।।
छाई खुशियॉ राजवंश में,
वीरनारायण पुत्रधन पाया।
काल गति ने चाल बदल दी,
रानी को सुख नही मिल पाया।।
चारवर्ष ही अभी हुये थे,
राजा दलपत स्वर्ग सिधारे।
संरक्षक बन राज्य सम्हाला,
राजा बना पुत्र को सहारे।।
प्रजाहित को दी प्रधानता,
धर्मशाला,मठादि बनबाये।
इसी कडी में जुड़ा जबलपुर,
रानी, चेरी,आधारताल बनबायें।।
देख प्रसिद्धि और लोकप्रियता,
मुगल बाजबहादुर चढ़ आया।
रानी लड़ी बनकर रड़ चड़ी,
मालवा मार मार भगाया।।
शौर्य पूर्ण सुन्दरता सुन सुन,
शासक अकबर भी ललचाया।
सरमन हाथी ,बजीर आधारसिंह,
भेंट रूप से मगवाया।।
रानी थी स्वाभिमान की पक्की,
प्रस्ताव तुरत ठुकराया।
जिस हौदे पर चढ़े राजवंश,
उसे पठान मॉगने आया।।
अकबर ने आसफ खॉ को भेजा,
हुआ युदध बहुत घमसान।
हुआ पराजित हार मानकर,
युद्ध भूमि से भगा पठान।।
रानी को भी क्षति बहुत थी,
सेना साधन की कमी थी।
पर अगले दिन फिर आ पहुंचा,
लेकर दुगनी सेना साथ।
दुर्बल प क्ष था दुर्गावती का,
फिर भी चली सेना ले साथ।।
पुत्रनारायण को भेज सुरक्षित,
स्वयं बनाया पुरूष का वेश।
मंडला रोड की बरेला भूमि,
युद्ध बिगुल का हुआ जयघोष| खूब लड़ी पराक्रम दिखलाकर,
नारी शक्ति का राखा मान।
खेंच कटार सीने मे मारी,
मात् रभूमि को दिया बलिदान।।
राजेश कौरव “सुमित्र”