*दुनिया एक नाटक है (हास्य व्यंग्य)*
दुनिया एक नाटक है (हास्य व्यंग्य)
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मृतक के बारे में चर्चा होती तो है लेकिन मुख्य जोर राजनीति, समाजशास्त्र ,व्यापार और शहर की विभिन्न संस्थाओं में चल रही उठापटक पर ज्यादा रहता है । कई बार लोग आवेश में आकर तीखी बहस करने लगते हैं, और सब का ध्यान उनकी ओर चला जाता है।
कई लोग माहौल को बिल्कुल ही विस्मृत कर देते हैं और चुटकुले सुनाने में लग जाते हैं । जो सुनाता है ,वह भी हँसता है और जिसको सुनाया जाता है वह भी हँसता है । माहौल की नजाकत को समझते हुए कुछ लोग ऐसे लोगों के पास से हट जाते हैं क्योंकि काजल की कोठरी में हाथ काले हो ही जाते हैं । चुटकुलेबाजों के साथ बैठोगे तो संदेश गलत जाता है । फिर भी कुछ लोग चुटकुलों का मन ही मन आनंद लेते रहते हैं। यद्यपि ऊपर से गंभीरता ओढ़ना बंद नहीं करते हैं । फिर जब दो मिनट का मौन रखा जाता है ,तब चर्चा पर विराम लगता है । मीटिंग खत्म हुई । अब तीजे की घोषणा सुनो । कहाँ होगा ? होगा कि नहीं होगा ?
तीजा दाह-संस्कार के तीसरे दिन होता है । अगर आज दाह संस्कार हुआ है तो परसों तीजा होगा । इसमें समाज के लोग बैठते हैं । आमतौर पर समय दो से तीन बजे का रहता है । स्थान के आधार पर अलग-अलग शहरों में समय बदल भी जाता है। ज्यादातर लोग ढाई बजे से आना शुरू होते हैं । कई लोग 2:55 पर पहुँचते हैं । कुछ लोग ठीक तीन बजे ही पहुँचते हैं । उद्देश्य यही रहता है कि मृतक के परिवारजनों को चलते समय प्रणाम कर लिया जाए तथा शोक – सूचक अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी जाए ।
हालाँकि ऐसा कम होता है ,लेकिन कई बार यह भी देखा गया है कि कुछ लोग ढाई बजे आते हैं ,मृतक के परिवार के बिल्कुल करीब जाकर बैठते हैं और 2:45 बजे उठकर चल देते हैं । एक – आध स्थान पर तो ऐसे बड़े लोगों का फोटो उनके कार्यकर्ता द्वारा खींचा जाता भी देखा गया है । बड़े लोगों के पास समय कहाँ होता है ! वह चाहे जिस समय आएँ और जिस समय चले जाएँ। सर्वसाधारण तीजे में आता है और जो लोग बैठे होते हैं ,उनमें सबसे पिछली पंक्ति पर चुपचाप बैठ जाता है । परिवार के लोग उसे देख लेते हैं और पहचान जाते हैं। बस इतना पर्याप्त है।
तीजे में भी कई लोग फोन पर बात करते हुए पाए जाते हैं। ऐसे लोगों की व्यस्तता समझी जा सकती है । कुछ लोग जरूरी काम की बातें तीजे में बैठकर आपस में करते रहते हैं । लेकिन इनकी संख्या कम है।
तीजे में शोक संदेश का विशेष महत्व रहता है । जितने ज्यादा शोक संदेश होते हैं, उतना ही मृतक को महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्यादातर शोक संदेशों में केवल इतना ही लिखा रहता है कि आपके पूज्य पिताजी की मृत्यु से दुख हुआ.. आदि-आदि । मरने वाले के कार्यों का उल्लेख केवल कुछ ही शोक संदेशों में किया जाता है । कुछ शोक संदेश एक जैसी रटी- रटाई भाषा में लिखे होते हैं। मैटर वही रहता है ,बस जिसको संबोधित करना है उसका नाम बदल दिया जाता है ।कई लोग शोक संदेश देने के बाद मृतक के परिजनों के पास ही बैठ जाते हैं। इसे कुछ लोग अच्छा मानते हैं ,कुछ लोग अच्छा नहीं मानते हैं ।
आजकल तत्काल सुंदर – सा फोटो बनने की सुविधा हो गई है । अतः तीजे के अवसर पर मृतक का एक शानदार फोटो बनकर तैयार हो जाता है । बाद में वह दुकान या घर पर लगाने के काम आता है। कुछ महापुरुषों की मूर्तियाँ चौराहों पर भी लग जाती है । उनके आगे से गुजरो तो कई बार उन महापुरुषों की मूर्तियों के गले में सूखे फूलों की मालाएँ पड़ी हुई दिखाई देती हैं । इससे पता चलता है कि दो-चार महीने पहले इन्हें फूल मालाएँ पहनाई गई होंगी। फिर वह सूख गई होंगी और उसके बाद किसी ने न मूर्ति की सुध ली, न महापुरुष की और न उनके गले में पड़ी हुई फूल मालाओं की सुध ली।
जिसकी मृत्यु होती है, उसके अलावा मृत्यु को बहुत ज्यादा गंभीरता से कोई नहीं लेता । एक औपचारिकता है ,परिपाटी है, जो निभाई जाती है। केवल मरने वाला ही इस बात को समझता है कि अब उसकी जिंदगी का यह आखिरी एपिसोड चल रहा है। बाकी लोगों को तो फिर सौ – पचास तीजों में जाना है ।सौ-दो सौ शव-यात्राओं को अटेंड करना है ।
लोग अनेक प्रकार से शोक प्रकट करते रहते हैं ।एक बार एक सज्जन को किसी ने किसी की मृत्यु के बारे में सूचित किया तो वह बहुत ज्यादा ओवर एक्टिंग करते हुए शोक में डूब गए । फिर जब उन्हें सुध आई तो पूछने लगे ” यह तो बताओ कि मृत्यु किसकी हुई है ? “-अब इस प्रश्न पर हँसा जाए या रोया जाए ?
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451