दीये की अभिलाषा
दीये की अभिलाषा
मैं दीया हूँ
अंधकार मिटाना
चाहता हूँ
प्रकाश फैलाना
चाहता हूँ
तूफानों से
जूझ रहा हूँ
कभी जल
कभी बुझ रहा हूँ
तेल है काफी
बात्ती भी है
तेज हवाएँ
सताती भी हैं
मुझे बुझाना
चाहती भी हैं
मुझे खूब
फङफङाती भी हैं
लेकिन मैं
जलना चाहता हूँ
सारा अंधकार
निगलना चाहता हूँ
-विनोद सिल्ला