दीया
सुमुखी सवैया–
घमण्ड रहे न अमावस के जब दीपक में उजियार रहे।
जरे घर भीतर बाहर लौ हर झोंक बदे तइयार रहे।
लड़े भर राति हरे तम के हर मारग के सँइहार रहे।
खुदे जरि बाँटि अँजोर इहाँ बतलावत ज्ञान क सार रहे।।
**माया शर्मा, पंचदेवरी, गोपालगंज (बिहार)**