दीपोत्सव (कहानी)
अभी दीपोत्सव त्योहार के दस दिन बाकी थे परन्तु सौरभ के घर अभी से धूमधाम व आतिशबाजी चालू हो गई थी ।वही उसका भाई गौरव विशेष उत्साह नहीं दिखा रहा था ।दोनों भाई एक साथ एक ही कम्पनी में काम किया करते थे ।पगार भी प्रायः समान ही मिलती थी ।दीपावली के कारण इस माह कम्पनी द्वारा महिने की पगार पहले ही भुगतान कर दी गईं थीं।
पगार पाकर सौरभ ने दीपोत्सव के अभी से खरीददारी शुरू कर दी थी ।जबकि गौरव ने अपनी पगार से कुछ नहीं खरीदा था ।दोनों भाई पडोस में रहते थे तथा सौरभ हमेशा गौरव को मक्खी चूस कहकर चिड़ाया भी करता था ।इस बार दीपावली को अधिक धूमधाम से मनाने के पीछे भी शायद गौरव को चिड़ाने का ही उद्देश्य था ।
रोज रोज की आतिशबाजी व नये नये फैशन के वस्त्राभूषणों पर सौरभ ने बहुत खर्चा किया था ।वही दूसरी ओर गौरव ने साधारण स्तर से ही दीपोत्सव की तैयारी कर ली थी ।दीपोत्सव पर हल्के फुल्के पटाखे व मिष्ठान आदि से त्योहार को हंसी खुशी मना लिया था ।
दीपोत्सव का पर्व व्यतीत होते ही सौरभ की पगार खर्च हो चुकी थी अपने पारिवारिक खर्च में कटौती करके अगली पगार का हिसाब लगाना शुरू कर दिया था ।
तभी अचानक कोरोना महामारी के चलते शासन द्वारा घर वंदी लगा दी गई थी ।अब तो कम्पनी वंद होने से सौरभ की मुश्किल और बढ़ गई थी ।घर में दैनिक उपयोग की सामग्री के साथ राशन तक की कमी आ गई थी ।पत्नी ताने पर ताने मारती कि अपने भाई से ही कुछ सीख लेते, अनाप -सनाप खर्च कर दीपावली मनाने से क्या मिला, कौनसी लक्ष्मी को मना लिया, अब भोजन की व्यवस्था कैसे होगी?
सौरभ अपने किये पर बहुत पश्चाताप कर रहा था पर अब क्या समय निकल चुका था ।सौरभ की फैशनबाजी व दिखावटी व्यवहार में कमी आती देखकर गौरव को अनुमान हो गया था कि भाई पैसों से लाचार हो गया होगा ।
गौरव उम्र में तो छोटा था पर समझदार बहुत था ।उसने अंदाजा लगा लिया कि भैया पैसा माॅगने या सहयोग लेने में सकुचा रहा होगा ।इस समय मेरा कर्तव्य बनता है बड़े भाई का सहयोग करना ।इस महामारी में तो लोग गैरो का सहयोग कर रहे हैं, सौरभ तो मेरा भाई है ।इसी उधेड़ बुन रात बीत गई ।सुबह होते ही गौरव ने अपनी पगार के तीस हजार रुपए लिए और सौरभ से कहा- भैया मेरे पास तीस हजार रुपए है, इनकी मुझे चार- पांच माह तक कोई जरूरत नहीं है, आप के पास जमा करना चाहता हूँ आप चाहें तो खर्च भी कर सकते हो ।जब मुझे जरूरत आवेगी एक माह पूर्व ही बता दूँगा ।
सौरभ ने अपने भाई गौरव को गले लगा लिया और कहा- भैया वर्तमान समय में मुझे बहुत जरूरत है ।दीपोत्सव पर अनावश्यक खर्च से मेरी पूरी पगार खर्च हो चुकी थी।कम्पनी भी वंद हो गई, घर का खर्चा चलना भी मुश्किल था ।
दोनों भाइयों का प्रेम व स्नेह दीपोत्सव त्योहार की कहानी सुना रहा था ।
स्वरचित
राजेश कुमार कौरव सुमित्र