दीपपर्व
मन मंदिर में करें रोशनी ।
सुधरे मानव स्वयं जीवनी।।
ज्योति प्रक्रिया की संरचना।
स्नेह रहित को करे कल्पना ।।
बिना स्नेह दीप नहीं जलता ।
संवेदना बिन नहि सहृदयता ।।
रूप सौंदर्य पर्व दिवाली ।
ज्योति की निष्ठाएॅ निराली।।
भूल गए संकल्प साधना ।
स्नेह रहित को करे कल्पना ।।
लघुता को सम्मानित करना ।
दीपक सिखलाता नित जलना।।
द्वेष भावना करें तिरोहित।
ज्ञान प्रदाता बनें पिरोहित ।।
अखंड दीप हृदय में रखना ।
स्नेह रहित को करे कल्पना ।।
देह श्रृंगार नहीं सफलता ।
हृदय विकारी कहाँ सुधरता।।
दीपपर्व देता संदेशा।
सुंदरता हो हृदय प्रदेशा।।
अंतर्मन एक दीप रखना ।
स्नेह रहित को करे कल्पना ।।