दीपक
दीपक जलते हैं अब तो मात्र दिवाली पर,
वैसे तो दिए रोज़ बुझाये जाते हैं ।
अब दिवाली के दीपक भी क्या दीपक हैं,
वो भी अब चाइनीज मंगाये जाते हैं ।
दीपक जलते हैं …
जब पता चला, है पत्नी मेरी गर्भवती ।
तो उसको लेकर अस्पताल में जाते हैं ।
लड़की होगी या लड़का होगा, पता चले,
बाबूजी उसके लिए जाँच करवाते हैं ।।
यदि लड़की है तो चंद रुपये डॉक्टर को देकर,
सोचे समझे बिना उसे मरवाते हैं ।
दीपक जलते हैं अब तो मात्र दिवाली पर ,
वैसे तो दिए रोज़ बुझाये जाते हैं ।।
वो सोया बच्चा, माता और पिता के संग,
थी सर्दी, था फुटपाथ, नहीं कंबल तक था ।
कल आधी-आधी रोटी तो थी मिली उन्हें,
शायद ईश्वर का स्नेह-प्रेम बस कल तक था ।
इस भूख-प्यास से व्याकुल होकर वे बच्चे,
फुटपाथों पर फ़िर ठिठुर-ठिठुर मर जाते हैं ।
दीपक जलते हैं अब तो मात्र दिवाली पर,
वैसे तो दिए रोज़ बुझाये जाते हैं ।
हर जगह युद्ध है, कहीं ज़हर की बोली का,
हर जगह युद्ध है, बंदूकों की गोली का ।
माहौल नहीं सद्भाव–प्रेम का दिखता है ,
अंधेरी दिवाली औ’ सूखी होली का ।
अब प्रेम नहीं है लोगों के मन में, रिश्ते –
बस नाम मात्र के लिए निभाए जाते हैं ।
दीपक जलते हैं अब तो मात्र दिवाली पर,
वैसे तो दिए रोज़ बुझाये जाते हैं ।
त्यौहार बनाए थे कि सबमें प्रेम बढ़े ,
पर प्रेम नाम की चीज यहाँ पर नहीं रहीं ।
सब ओर कलह है, द्वेष भावना है सबमें ।
वो ऐक्य भावना मुझको दिखती नहीं कहीं ।
अब त्यौहारों का मतलब बस इतना सा है
घर पर पूडी–पकवान बनाए जाते हैं ।
दीपक जलते हैं अब तो मात्र दिवाली पर,
वैसे तो दिए रोज़ बुझाये हैं ।