*दीपक (कुंडलिया)*
दीपक (कुंडलिया)
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जलता दीपक .कह रहा ,गति मुझमें अविराम
जब तक तिल-भर तेल है ,करता कब आराम
करता कब आराम , उजाला सदा लुटाता
मेरे भीतर प्राण , नहीं तम से घबराता
कहते रवि कविराय ,हाथ क्षण-भर में मलता
हुआ खत्म जब तेल ,कभी फिर बुझा न जलता
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451