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8 Aug 2024 · 6 min read

दीदी का कर्ज़

दीदी का कर्ज़

“देखो तुम दीदी से कह दो कि बार बार यहां न आया करें। ” सलोनी ने अपने पति धीरज से कहा। “ये क्या बोल रही हो सलोनी?” दीदी का हमारे सिवा और कौन है? धीरज गुस्से से बोला। “वो सब मैं नहीं जानती”। “उनको मना कर दो कि यहां न आया करें। अब तो अम्मा जी भी नहीं है जो कभी भी आ जाती हैं।” सलोनी ने जवाब दिया।
सलोनी से ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी धीरज को। दीदी जब आती हैं तो घर में रौनक आ जाती है। एक ही तो बहन है मेरी, उसको कैसे मना कर दे आने से। आखिर ये दीदी का भी तो घर है। जीजाजी के गुजर जाने के बाद दीदी एकदम अकेली हो गई थी। बच्चे अपने अपने कामों में व्यस्त थे। इसलिए कभी कभी यहां आ जाती हैं मिलने हमसे। धीरज सोच रहा था कि सलोनी क्यों दीदी का हमारे यहां आना पसंद नहीं करती। दीदी तो ज्यादा बात भी नहीं करती।
राखी में दीदी आ रही थीं, उन्होंने बताया था कुछ दिन पहले फोन पर। मैं बहुत ज्यादा खुश था। मैंने ये बात सलोनी को बताई कि प्रिया दीदी आ रही हैं राखी पे। इस पर भी सलोनी का मुंह बन गया। कहने लगी कि “उनको आने की क्या जरूरत थी, राखी भेज देती बस। और क्या”। धीरज बोला कि” तुम्हें इस में क्या तकलीफ़ है अगर दीदी मुझे राखी बांधने आ रही है तो?”।
सलोनी बोली” मुझे भी तो जाना होगा राखी बांधने अपने भाइयों को।” “तो तुम जाओ न, तुमको कौन रोक रहा है “? धीरज ने चिल्लाकर कहा तो सलोनी उठकर कमरे से बाहर निकल गई।

आखिर राखी का दिन आ ही गया। धीरज सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर तैयार हो गया और मंदिर से आकर अख़बार पढ़ने लगा। सलोनी ने नाश्ता टेबल पर रख दिया। सब नाश्ता कर ही रहे थे कि तभी दीदी आ गई। “नमस्ते दीदी” धीरज ने उठकर दीदी को प्रणाम किया और नाश्ता करने को कहा। इतने में ही सलोनी बोल पड़ी “पहले बता देती कि कितने बजे तक आएंगी तो मैं आपके लिए कुछ बना देती।” अब तो मुझे देर हो रही है। भाई राह देखते होंगे।”

“कोई बात नहीं सलोनी, तुम आराम से जाओ”। दीदी ने कहा। मुझे वैसे भी भूख नहीं है। मैं चाय नाश्ता करके ही आई हूं। “अच्छा ठीक है फिर मैं चलती हूं”। “आप दोपहर के लिए कुछ बना लेना”। मैं तो शाम तक ही आऊंगी “। ये बोलकर सलोनी जल्दी जल्दी बाहर निकल गई।
“और बताओ दीदी, बच्चे कैसे हैं”? धीरज ने दीदी का ध्यान अपनी तरफ करते हुए कहा। “सब ठीक है धीरज”।
दीदी ने धीरे से जवाब दिया। “चलो मैं राखी बांध देती हूं “। दीदी बोली। “जी दीदी”। दीदी ने धीरज के हाथ पर राखी बांधी और मिठाई खिलाई। धीरज ने दीदी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया और उनको एक लिफाफा दिया जिस में कुछ पैसे थे।
“दीदी, आप थोड़ी देर आराम कर लिजिए”। मुझे ऑफिस का काम निपटाना है, फिर आपसे मिलता हूं।” धीरज ने दीदी से कहा। “ठीक है धीरज, जाओ तुम अपना काम कर लो”। दीदी बोली। धीरज चला गया अपने कमरे में तो दीदी लेट गई और सोचने लगी कि यही वो घर है जहां हम खेलते थे, आराम से घूमते थे, कोई रोक टोक नहीं थी, कहीं भी बैठो कुछ भी खाओ।
मगर अब तो ये घर पराया लगने लगा है।
बड़ी देर तक दीदी सोचती रही कि क्या बेटी और बहन इतनी पराई हो जाती हैं शादी के बाद? कि तभी धीरज भागता हुआ आया। बहुत ज्यादा घबराया हुआ लग रहा था। “क्या हुआ धीरू, तू इतना परेशान क्यों लग रहा है? “सब ठीक है ना?”
“नहीं दीदी, कुछ ठीक नहीं है।” सलोनी का एक्सीडेंट हो गया। धीरज ने बड़ी दबी आवाज़ में कहा। “क्या?” कब, कैसे” दीदी ने एक सांस में पूछा। “दीदी, सलोनी जब यहां से जा रही थी तभी उसका एक्सीडेंट हो गया “। उसके भाई के घर के पास ही थोड़ी सी दूरी पर।” किसी ने उसको पहचान लिया और तुरंत ही उसके भाई को फोन किया। फिर वो लोग सलोनी को हॉस्पिटल ले गए।” अभी उसके भाई का फोन आया था कि ख़ून बहुत ज्यादा निकला है इसलिए डॉक्टर ने जल्दी ब्लड अरेंज करने को कहा है।” मैं वहीं जा रहा हूं “। “रुको, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं “।
“ठीक है दीदी, चलिए”। मैं गाड़ी निकलता हूं।” दीदी ने दरवाज़े पर ताला लगाया और जल्दी से बाहर आ गई। धीरज ने गाड़ी स्टार्ट की और थोड़ी ही देर में वो लोग हॉस्पिटल पहुंच गए। वहां पहुंचकर दीदी सलोनी की मां के पास चली गई जो बहुत रो रही थीं।” कुछ नहीं होगा हमारी सलोनी को”। दीदी ने सलोनी की मां से कहा। सलोनी की मां ने हां में सर हिला दिया और हाथ जोड़कर खड़ी हो गई।
धीरज सलोनी के भाइयों के साथ ब्लड बैंक चला गया। सलोनी को होश नहीं था। दीदी ने सलोनी की मां से कहा “मैं अभी आती हूं”। सलोनी की मां ने कहा “जी ठीक है “। सलोनी वहां से सीधा डॉक्टर के पास गई। “डॉक्टर साहब, मेरा ब्लड ले लीजिए और सलोनी को बचा लीजिए “। “अच्छा, आइए मेरे साथ।” “नर्स, इनका ब्लड ग्रुप चेक करो”। डॉक्टर ने नर्स से कहा।
नर्स ने ब्लड ग्रुप चेक करने के बाद डॉक्टर से कहा” जी डॉक्टर, इनका ब्लड ग्रुप मैच कर रहा है पेशेंट के ब्लड ग्रुप से।”
“वंडरफुल” डॉक्टर ने कहा “आप नर्स के साथ जाइए”। दीदी ने कहा “जितना खून चाहिए आप ले लो पर सलोनी को कुछ नहीं होना चाहिए बस।” दीदी का खून चढ़ाने लगे सलोनी को।
इधर धीरज और सलोनी के भाइ परेशान थे कि कहीं से भी ब्लड नहीं मिल रहा। हताश होकर वो लोग वापिस आ गए। डॉक्टर को बताया कि कहीं से ब्लड अरेंज नहीं हो रहा है। इस पर डॉक्टर ने कहा कि ब्लड तो अरेंज हो गया है और अब पेशेंट खतरे से बाहर है। सब हैरान थे कि किसने अपना खून देकर सलोनी की जान बचाई? “डॉक्टर, किसने हमारी सलोनी को अपना ब्लड देकर उसको मौत के मुंह से बाहर निकाला?” हम उससे मिलना चाहते हैं।
“आइए मेरे साथ” डॉक्टर ने कहा। नर्स, वो कहां गईं जिन्होंने पेशेंट को ब्लड दिया?” वो तो कब की यहां से चली गई डॉक्टर”। नर्स ने बताया। मुझे उनको धन्यवाद कहने का मौका भी नहीं मिला, मन ही मन धीरज सोचने लगा। “आप लोग एक एक करके पेशेंट से मिल सकते हैं” नर्स बोली। “थैंक यू” सबने मिलकर एक साथ कहा और एक एक करके सलोनी से मिलने चले गए।
सलोनी बहुत उदास थी। धीरज ने कहा कि “तुम जल्दी ही घर चलोगी।” भगवान का शुक्र है तुम ठीक हो गई।” इतने में सलोनी की मां भी वहां आ गई। सलोनी अपनी मां से लिपटकर रोने लगी। मां ने “कहा बस बेटी अब नहीं रोना।” सलोनी धीरज से कहने लगी” कैसी है तुम्हारी बहन, मुझे देखने तक नहीं आई।” जब घर आई हुईं थी तो यहां साथ नहीं आ सकती थी क्या?” कितनी अक्कड़ है उन में। हमारे यहां तो कभी भी मुंह उठाकर चली आती है। ऐसे मौके पर मुंह फुलाकर बैठ गई।” छी
इससे पहले कि धीरज कुछ बोलता, सलोनी की मां बोल पड़ी “बस कर सलोनी, अब एक शब्द और नहीं”। देवी हैं वो”।” मां, अगर देवी हैं तो मंदिर में जाएं न, हमारे यहां क्यों आ जाती है बार बार?” चुपकर सलोनी” तुझे पता भी है कि जो तू अभी ठीक हुई है न, ये उनकी ही बदौलत है। “उन्होंने तुझे अपना खून देकर तेरी जान बचाई है।”
” ये क्या कह रही हैं आप मां?” सलोनी को कुछ नहीं समझ आ रहा था। “हां बेटी, उन्होंने ही तुझे अपना खून दिया है।” ” मैंने उनका कितना अपमान किया है और दीदी ने मेरी जान बचाई।” मुझे भगवान कभी माफ नहीं करेगा।” सलोनी ये कहकर रोने लगी। “मुझे माफ कर दो धीरज, मैंने दीदी का बहुत दिल दुखाया है।”

” ज्यादा मत सोचो अभी सलोनी” धीरज बोला। “आराम करो। “हम दीदी से मिलने जाएंगे धीरज, मैं उनके पैरों में गिरकर उनसे माफी मांग लूंगी”। कहते हुए सलोनी फिर रोने लगी। धीरज ने उसको गले लगा लिया।

सलोनी वहां से डिस्चार्ज होने के बाद घर आ गई। कुछ दिन आराम करने के बाद वो ठीक हो गई। “अब हम दीदी से मिलने जाएंगे धीरज” सलोनी ने कहा। तभी एक फोन आया जो दीदी के पड़ोसी का था। धीरज ने फोन पर बात करके जैसे ही रिसीवर रखा, उसके पैर मानो जब गए थे। “क्या हुआ धीरज, किसका फोन था”? चुप क्यों हो? बोलो ना।
” दीदी हम सबको छोड़कर चली गई सलोनी” ये कहकर धीरज फूट फूटकर रोने लगा। “अब दीदी कभी हमारे यहां नहीं आएंगी सलोनी”। “मैं दीदी का कर्ज़ कैसे चुकआऊंगी” सलोनी धीरज के गले लगकर रोने लगी।

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