दीदार-ए-इश्क
एक सुकून मिलता है तुझे देख कर,
मैं गुमसुम हो जाता हूं तुझे चाहकर,
मायूस ही गुजरता है मेरा वो दिन..
बातें ना तुझसे तो भटकता हूं दरबदर।।
मिल जाती है राहत, हुस्न ओ दीदार से तेरे..
मैं मुकम्मल हो जाता हूं प्यार से तेरे,
कमबख्त उस दिन बेकरार रहता हूं
आवाज ए यार सुनने को तेरे।।