*दिव्य भाव ही सत्य पंथ है*
सप्रेम भेंट स्नेह वेश रीति दिव्य भावना।
सदैव भेंट मित्रता अपार सभ्य कामना।
सहानुभूति भेंट में समस्त लोक बांटते।
चले समग्र जिंदगी सप्रेम राह काटते।
बनावटी कभी नहीं बने रहस्य जिंदगी।
रहो सदैव प्रेम से सप्रेम विश्व वंदगी।
सप्रेम भेंट सर्व का पवित्र राग पर्व है।
अनेक एक सा बने तभी असीम गर्व है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।