दिल लगाना कब मना है
दिल लगाना कब मना है
रुला कर मुस्कराना कब मना है
कई तूफाँ आए है यहाँ
उफ़ान में कश्ती चलाना कब मना है
कांटे ही कांटे हो जब हर तरफ
कांटो को पार कर जाना कब मना है
हिज़ाब हो जब चेहरे पर
चेहरा दिखाना कब मना है
रिश्ता ऐ उल्फ़त में दर्द है माना
उल्फ़त का रिश्ता निभाना कब मना है
जब खुला आसमाँ ही आशियाना हो
तो चाँद तारों की छाव में रात बिताना कब मना है
जब इंतज़ार ही लिखा है क़िस्मत में
तो रातों को तन्हाई से लिपटकर सो जाना कब मना है
उक़ूबत है इश्क़ में माना
तो अश्रु बहाना कब मना है
एहतियाज है तिश्रगी में आब की
तो तिश्रगी में मर जाना कब मना है
एहतियाज= आवयश्कता
आब। –पानी
तिश्रगी– प्यास
कागज़ ही अंतिम आश्रा हो जब
तो दर्द कागज़ में सजाना कब मना है
कफ़स में कैद हो जब शेष जीवन
तो कब्र को आशियाना बनाना कब मना है
ख़ाक हो गयी हो जब ज़िन्दगी भूपेंद्र
ख़िदमत में क़ल्ब का कुर्बान हो जाना कब मना है
भूपेंद्र रावत
25।08।2017