दिल जले यों कि दाग़ जलते हैं
2122 + 1212 + 22
इश्क़ के ज्यों चराग़ जलते हैं
दिल जले यों कि दाग़ जलते हैं
हिज़्र में ये बहार का मौसम
कितने ही सब्ज़ बाग़ जलते हैं
ख़ाक़ उड़ने लगी तसव्वुर में
आशिक़ों के दिमाग़ जलते हैं
है फ़क़त शा’इरी महब्बत भी
जब हज़ारों सुराग़ जलते हैं
मयकशी* कुछ न पूछ ऐ साक़ी
रोज़ कितने अयाग़** जलते हैं
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*मयकशी — मदिरापान
**अयाग़ — शराब के प्याले