#दिल्ली का दर्द और उसकी दवा
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* वुहानी दैत्या कोविड-१९ अपने साथ जिन दारुण समस्याओं को लेकर आई है उनमें से प्रमुख है, “श्रमिक समस्या”। इन पंक्तियों के लेखक ने २०१४ में यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को जो पत्र लिखा था यदि वो सही हाथों में पहुंचता तो इस समस्या का जन्म लेना ही संभव न था। *
* नीचे पूरा पत्र दिया है। आप पढ़ें और यदि सहमत हों तो अपने मित्रों तक इस आग्रह के साथ पहुंचाएं कि वे भी ऐसा ही करें ताकि बात प्रधानमंत्री महोदय तक जा पहुंचे। *
१४-६-२०२१
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■ #दिल्ली का दर्द और उसकी दवा? ■
प्रिय प्रधानमंत्री जी, सस्नेह नमस्कार !
श्री विजय गोयल और श्रीमती शीला दीक्षित जब यह कहते हैं कि दिल्ली को गंदगी, अपराध जैसे दर्द उत्तरप्रदेश और बिहार के लोगों ने दिए हैं तो वे गलत नहीं कहते। और श्री कीर्ति आज़ाद और श्री महाबल मिश्रा का यह कहना भी शत-प्रतिशत सही है कि देश के प्रत्येक नागरिक को देश के किसी भी कोने में रहने-कमाने का अधिकार है।
मेरे जैसे लोग जिनका जन्म तो दिल्ली में हुआ परंतु रहते दिल्ली से बाहर हैं। जिन्होंने रिंग रोड और फिर बाहरी रिंग रोड को बनते देखा है। पूरे शहर में उपरिमार्गी पुलों का जाल बिछते देखा है। तांगे-इक्के का स्थान डी.टी.सी. बसों को लेते देखा है। मेट्रो रेल की सुविधा भी देखी है। और, इन सबके साथ दिल्ली शहर को कंक्रीट के जंगल में घना, और फिर और घना होते भी देखा है। दिनों-दिन सड़कों पर बढ़ती भीड़ और गलियों में आज कंधे से कंधा छिलते हुए भी देख रहे हैं।
मैंने बचपन में टिड्डीदल देखे हैं। जिस खेत में एक बार टिड्डीदल बैठ जाता था, मिनटों में उसे चट कर जाता था। लेकिन, दिल्ली में ऐसा टिड्डीदल बैठ रहा है जो उसे खाने और उजाड़ने के बाद भी वहां से उड़ नहीं रहा बल्कि दिनों-दिन उसकी संख्या में वृद्धि होती जा रही है।
दिल्ली के इस दर्द का इलाज करने से पहले इस रोग का कारण जानना होगा।
राखी जैसी मामूली चीज़ की खरीदारी के लिए भी पूरे देश के हर कोने से व्यापारी ही नहीं दुकानदार भी दिल्ली आते हैं। यह हैरानी ही नहीं शर्म का विषय भी है।
काम-धंधे और नौकरी ही नहीं मज़दूरी के लिए भी दूर-दराज़ से लोग दिल्ली चले आते हैं और इन सबकी ओट में असामाजिक और अपराधी तत्त्व भी आ जाते हैं। और जितने लोग हर दिन चले आ रहे हैं उसके अनुपात में वापिस अपने घर लौट जाने वालों की संख्या नगण्य ही है।
हरियाणा के गुड़गांव, फरीदाबाद को अपने उदर में समेटने के बाद दिल्ली सोनीपत और रोहतक की ओर बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद और नोएडा तक फैल रही हैं दिल्ली की भुजाएं। राजस्थान के अलवर तक भी दिल्ली के दर्द की लहरें पहुंच रही हैं। और जहाँ आगे बढ़ने के रास्ते में रुकावट आई तो क्या हुआ?
पिछले बीस-पच्चीस सालों में जिस सौ वर्ग गज़ के मकान में पाँच लोगों का एक परिवार रहता था, पहले उसके दो या तीन टुकड़े हुए। फिर उसमें फ्लैट बने। आज उसी सौ वर्ग गज़ में छह से आठ परिवार तक रहते हैं।
बिजली पानी और सफाई सीवरेज की सुविधाओं का दिनोंदिन बुरा हाल होने का यही कारण है। जो सड़क या गली पहले चालीस परिवारों के लिए थी आज वहीं पर चार-पाँच सौ परिवार उसी सुविधा को पाना चाहते हैं।
और, जब भी चुनाव समीप आते हैं तो राजनीतिक दल अवैध कालोनियों को वैध करने का वादा कर देते हैं।
उन कालोनियों को बसाने के लिए जिन लोगों ने ज़मीन दी, उन पर कोई कानून लागू नहीं होता? उस इलाके के प्रशासनिक अधिकारी उस अवैध निर्माण के लिए कभी दोषी नहीं ठहराए जाते? कोई नहीं पूछता बिजली विभाग से कि आपने अवैध कालोनी को कनैक्शन क्यों दिए?
वहाँ बसने वाले लोगों को सीवरेज की सुविधा कैसे मिले? क्योंकि तंग और टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में पाईप बिछाना संभव नहीं है। और फिर पीने का पानी भी गली के अंदर तक नहीं जा पाता। और अगर यह दोनों सुविधाएं किसी तरह वहाँ पहुंचा भी दी जाएं तो उन कच्ची गलियों में साफ पानी और गंदे पानी के पाईप कब आपस में एक-दूसरे के भीतर तक झांकने लगेंगे इसका कोई भरोसा नहीं।
दूर-दूर प्रदेशों से आए हुए दिल्ली में हर किसी को कोई-न-कोई काला-सफेद धंधा मिल ही जाता है। जिन्हें कोई काम-धंधा नहीं मिलता या वो करना नहीं चाहते वे छोटे-मोटे अपराधों से ही अपना पेट भर लेते हैं। पुलिस सब जानती है। वहां कौनसा रिक्शा वाला या फेरी वाला असल में कैसे गुज़ारा करता है यह कोई नहीं जानता?
गाँव का कुत्ता एक दिन अपने दोस्त से मिलने शहर आ गया। दिन भर दोनों कोने में दुबके रहे। सांझ होते ही एक बाज़ार में जा पहुंचे। चाट-पकौड़ी और जलेबी आदि के पकवानों की रेहड़ियों की जूठन खाकर जब वो अपने ठिकाने पर लौटे तो गाँव का कुत्ता बोला, “यार, स्वाद तो बहुत आया मगर पेट नहीं भरा।” शहरी कुत्ते ने अपनी कही, “इसी स्वाद के मारे तो यहाँ पड़े हैं। वरना पेट भरने के लिए गाँव में कौनसी कमी थी?”
ऐसे स्वाद के मारों का ठीया बन चुकी दिल्ली, तरह-तरह के अपराधियों की शरणस्थली बन चुकी दिल्ली, विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित नगरों में सर्वोच्च नगर दिल्ली का दर्द कैसे दूर होगा? इस समस्या का हल न तो श्री महाबल मिश्रा बताते हैं न श्री कीर्ति आज़ाद? इस समस्या का हल न तो श्रीमती शीला दीक्षित बता रही हैं न श्री विजय गोयल? फिर महान देश भारत की राजधानी दिल्ली साफ-स्वच्छ, प्रदूषणमुक्त, अपराधमुक्त कैसे होगी?
मेरे कुछ सुझाव हैं — अवैध कालोनियाँ जिन लोगों की ज़मीन पर बसी हैं और जिन लोगों (कालोनाईज़रों) ने बसाई हैं, उन सब लोगों को देश के विकास को रोकने के अपराध में, प्रदूषण फैलाने के अपराध में, अवैध खरीद-बेच के अपराध में फौरन जेल में ठूंस दीजिए और उन क्षेत्रों में नागरिक सुविधाएं देने का जो खर्च आए उसे उन लोगों से वसूल करके ही छोड़िए। जिन बिजली विभाग के अधिकारियों ने वहाँ बिजली पहुंचाई है, जिन प्रशासनिक अधिकारियों ने अवैध कालोनियों में पानी-सीवरेज की सुविधा दी है उन सब लोगों की और उनके परिवार की चल-अचल सम्पत्ति की जांच कीजिए और जहाँ-जहाँ भी आय से अधिक सम्पत्ति मिले उसे ज़ब्त कर लीजिए।
लेकिन, मैं यह जानता हूं कि यह सब आप नहीं कर पाएंगे। आप क्या, कोई भी सरकार नहीं कर पाएगी। कोई भी राजनीतिक दल यह सब होने नहीं देगा। फिर?
मैं ऐसा सुझाव दे रहा हूं जिसे किसी को भी मानने से एतराज़ नहीं होगा।
“दिल्ली किराएदार कानून” बनाइए। जिसमें यह प्रावधान हो कि हर मकान मालिक अथवा दुकान मालिक को अपने किराएदार की पूरी जानकारी देनी होगी कि आपके पास आने से पहले वो कहाँ रहता था अथवा कहाँ दुकान करता था? और, दस साल पहले कहाँ था? बीस साल पहले कहाँ था? तीस साल पहले कहाँ था? यह सारी जानकारी मकान मालिक को देनी होगी। उसे अपने किराएदार से लेनी है। किरायेदार और उसके परिवार की पूरी जानकारी फोटो सहित किरायेदार से लेकर मकान मालिक को देनी है। अगर किरायेदार कोई जानकारी नहीं देता तो उसे यह भी बताना होगा कि फलां जानकारी किरायेदार ने नहीं दी है। और यह सारी जानकारी इंटरनेट पर देनी होगी। दिल्ली के सभी ज़िलों को, मुहल्लों को, गलियों को अलग-अलग क्रमांक दीजिए। और अगर किरायेदार दूसरे प्रदेश से आया है तो ऐसी दशा में देश के सभी प्रदेशों को भी एक-एक क्रमांक दीजिए। और फिर उस प्रदेश के ज़िलों और नगरों को भी अलग-अलग क्रमांक दीजिए। यह सारी जानकारी पाने के लिए दिल्ली सरकार की ओर से इंटरनेट पर एक वेबसाइट बनाई जाए। जिस पर लोग अपनी और अपने किरायेदार की जानकारी डाल सकें। इसके लिए सभी दिल्लीवासियों को तीन महीने का समय दीजिए।
अब आपके पास यह जानकारी आ चुकी है कि देश के किन-किन प्रदेशों से और उनके किन-किन ज़िलों अथवा नगरों से लोग आए हैं। उन सभी प्रदेशों के ज़िलों, नगरों, कस्बों में एक-एक औद्योगिक क्षेत्र बनाइए। उन सभी क्षेत्रों में एक-एक सदर बाज़ार, खारी बावली बाज़ार, भगीरथ पैलेस, कश्मीरी गेट बाज़ार, नेहरु प्लेस बाज़ार और पालिका बाज़ार बनाना शुरु कीजिए। इस काम को आकार लेने में, योजना बनाने में तीन महीने का समय पर्याप्त होना चाहिये। यह सब बाज़ार और औद्योगिक क्षेत्र केवल छोटे-छोटे कस्बों में ही होने चाहिएं बड़े शहरों में नहीं।
तीन महीने के बाद सभी थाना क्षेत्र के पुलिस कर्मचारी, नगरपालिका कर्मचारी, स्थानीय निकाय के चुने हुए प्रतिनिधि मिलकर घर-घर जाकर इंटरनेट पर दी गई जानकारी का असली कागज़ात के साथ मिलान करें। साथ में एक न्यायिक अधिकारी भी रहना चाहिए। जो मौके पर ही अनियमितता के दंड की घोषणा करे। अनियमितताओं में मकान मालिक के द्वारा नगर निगम को विभिन्न सुविधाओं के लिए चुकाए जा रहे शुल्क की रसीद, गृहकर, किरायेदार रखने का कर, बिजली, पानी, सीवरेज आदि की रसीद होनी चाहिए।
और अगर किसी मकान मालिक ने अपने किरायेदार की घोषणा नहीं की है तो पहला अपराध उसका यह है कि उसने एक ऐसे व्यक्ति को छुपने की जगह दी है जो किसी भी तरह का अपराध कर सकता है अथवा उसने पूर्व में अपराध किया है। तो मकान मालिक को उस अपराध का सहयोगी मानना होगा। और उसे दूसरे किसी भी सबूत के बिना सज़ा भुगतनी होगी।
ऐसा ही आदेश सभी दुकानदारों और कारखानेदारों और होटलों आदि के लिए भी जारी करना होगा। उन्हें भी अपने यहाँ काम कर रहे नौकरों-कर्मचारियों की जानकारी देनी होगी।
ऐसा ही आदेश सभी सांसदों के लिए भी होना चाहिए कि उनके निवास पर कौन-कौनसे कर्मचारी (सरकारी को छोड़कर) हैं।
और जिन लोगों ने अपने घरेलू कामों के लिए नौकर, ड्राइवर, चौकीदार आदि रखे हुए हैं, उन्हें भी पूरी जानकारी देनी होगी।
कुछ संस्थाएं अथवा राजनीतिक दल जिनके कार्यालय दिल्ली में हैं, वहाँ कार्यरत कर्मचारियों (स्थायी अथवा अस्थायी) की जानकारी उस संस्था को देनी होगी।
उपरोक्त सभी क्षेत्रों के लोगों को, जिन्हें जानकारी देनी है, जानकारी न देने अथवा गलत जानकारी देने की सज़ा का प्रावधान पहले ही करना चाहिए।
इंटरनेट पर दी गई जानकारी का घर-घर जाकर मिलान करनेवाले दल में न्यूनतम पंद्रह-बीस व्यक्ति होने चाहिएं। क्योंकि मौके पर न्यायिक अधिकारी द्वारा दंड की घोषणा करने अथवा अवांछित लोगों पर पुलिस कार्रवाई होने पर समस्या खड़ी हो सकती है।
और, इससे भी पहले, — “दिल्ली किरायेदार कानून” के अस्तित्व में आने से भी पहले, मुहल्ला अथवा बस्ती सभा का गठन करना चाहिए। किसी भी सभा में पाँच सौ से कम मकान न हों (फ्लैट नहीं मकान)। सभा की पंचायत का मुखिया प्रधान, पाँच व्यक्ति पंच और पाँच व्यक्ति सभा के सदस्य होने चाहिएं। किसी भी क्षेत्र की समस्या के लिए उस क्षेत्र की ‘सभा’ का एक व्यक्ति यदि कहीं किसी सरकारी कार्यालय में जाता है तो यह मानना चाहिए कि पाँच सौ परिवार वहां आए हैं। इन मुहल्ला सभाओं को ग्राम पंचायतों की तरह कानूनी मान्यता दी जाए।
प्रिय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी, मैं अकेला व्यक्ति नहीं हूं जिसे आपसे कुछ आशाएं हैं। इस देश की अधिकांश जनता आपकी ओर आशा भरी दृष्टि से देख रही है। इनमें वो लोग भी हैं जिन्होंने भाजपा को वोट नहीं दिया है। और वो लोग भी हैं जिन्होंने भाजपा के विरोध में वोट दिया है।
दिल्ली का जो दर्द है वही दर्द लुधियाना और जालंधर का भी है। वही पीड़ा अम्बाला और करनाल की भी है। उसी दर्द से अमृतसर का सर दुख रहा है, और वही दर्द पानीपत की पसलियों में भी है। और मेरा शहर यमुनानगर भी उस दर्द से अछूता नहीं है। मुंबई और बैंगलुरु भी उसी दर्द को झेल रहे हैं।
मेरी राय है कि “मुहल्ला सभा” और “(दिल्ली) किरायेदार कानून” को पूरे देश के नगरों-महानगरों में लागू कीजिए। ठीक उसी तरह जैसे मैंने दिल्ली के लिए सुझाया है कि जहाँ-जहाँ से लोग आकर शहरों में बसे हैं वहाँ-वहाँ औद्योगिक क्षेत्र और विभिन्न बाज़ार बना दीजिए। फिर देखिए सिर्फ दिल्ली नहीं सारे देश के नगरों-महानगरों का दर्द जाता रहेगा।
बड़े प्यार और विश्वास के साथ
-#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२
*जब श्री नरेन्द्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे मैं उन्हें पत्र लिख रहा था। तब लिखे बारह पत्रों में से नौवां है।
-वेदप्रकाश लाम्बा 🙏