दिल्लगी की सजा है, दिल्ली
दिल्लगी की सजा है दिल्ली, एक कविता
धुन्ध देख कर मन घबराया,
गगन कुहासा छाया
स्मोग भरा वायु का कण कण,
प्राण वायु को तरसे पल पल मन,
संकट में हैं प्राण बचा लो,
घिर गयेसब बाल, वृद्ध जन
जहरीला ये गगन हो गया
C O2 अब मगन हो गया.
राज हो गया co2 का
O2 हो गया पराजित
सच से पर्दा आज उठ गया
अविश्वास पर विश्वास हो गया।
धुंध भरी ये जीवन गाथा
गाता हर दिल्ली वाला
धुंध धुंध ये उफ धुंध है
जीवन की रफ्तार मंद है,
रेंगती,लरजती, घुटन्नो चलती दिल्ली,
हाथ, हाथ को हाथ दिखाती दिल्ली
कराहती,कोसती सिसकती दिल्ली
खांसती खांस खांस दम लेती दिल्ली
रूक,रुक कर रूकने को मजबूर है दिल्ली,
दिल्ली वालों की व्यथा है,या
दिल्लगी की सजा है दिल्ली।
या दिल्लगी की सजा है दिल्ली।