दिलदार
दिल में अब ज़ोर कुछ ना था
ये जो घर किसी और का था
हमने तो अब सिर्फ चाहा उसे
ये जो हमसफ़र किसी और का था
मुकद्दर में ना था वो चारागर मेरा
वो जो दिलदार किसी और का था
दिलो तब्बसुर में बसाया था हमने जिसे
वो तलबगार अब किसी और का था
खाखगर को जो दिल की बाते बताई
वो जालिम बेवफ़ा किसी और का था
ख्वाबो ख्यालो में कल जो मेरे आया था
महसर में अब खड़ा वो किसी और का था
थोड़ी सी रानाई आये दिल में भी मेरे
‘आकिब’इस दुनिया में वो किसी और का था
®आकिब जावेद