दाल के तड़का
आईं – गाईं करत रहलें बस ,बात होत रहे बड़का -बड़का।
एक बार नहीं कई बार पुछाईल, एके बात के हड़का- हड़का।
समय से अगर तड़का मिली जइतें लास्ट बार के बात रहे,
अबकी बार बस पूछि लेंती ,बताव कब लगी दाल के तड़का।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
आईं – गाईं करत रहलें बस ,बात होत रहे बड़का -बड़का।
एक बार नहीं कई बार पुछाईल, एके बात के हड़का- हड़का।
समय से अगर तड़का मिली जइतें लास्ट बार के बात रहे,
अबकी बार बस पूछि लेंती ,बताव कब लगी दाल के तड़का।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी