दादा का लगाया नींबू पेड़ / Musafir Baitha
कहीं दूर से किसी गांव के अपने एक आत्मीय से
मांग लाए थे दादा नींबू पौध
और लगाया था उसे अपनी बाड़ी में
दुख की घड़ी में एक टुकड़ा साथ क्या मांगा
इस नींबू मांगकर बीमार दादी के लिए
पड़ोसी नकछेदी साव को लगा था कि
दादा ने जान ही मांग ली उसकी
जबकि नकछेदी के सांवरे बदन पर
लकदक साफ शफ्फाफ धोती कुर्ता
जो शोभायमान देख रहे हैं आप
उसकी बरबस आंख खींचती सफाई
दादा के कारीगर हाथों की
करामात ही तो है
गांव-जवार सभा-समाज दोस-कुटुम भोज-भात
हर कहीं नकछेदी के धोती-कुर्ते पर
सम्मोहित आंखें जो टंगी होती हंै
पूछने पर दादा के हुनरमंद हाथों का बखान
झख मारकर उसे करना पड़ता ही है
दादा ने यह नींबू पौध नहीं लगाया
गोया लगाया अपने ठेस लगे दिल को
सहलाता एक अहं अवलंब
अपने खट्टे अनुभवों को देता एक प्रतीक
अब दादा की दुनियावी गैरमौजूदगी में
उनका यह अवलंब तब्दील हो गया है
एक अस्मिता स्मृति वृक्ष में
और नया अवलंब नये घर की नींव डालने के क्रम में
है अभिशप्त यह समूल अस्तित्वविहीन हो जाने को
अगर दादा मौजूद होते इस दुनिया में
तो अपने उत्तराधिकारियों से जरूर पूछते
कि किसी पुरा प्रतिगामी थाती की
छाती पर चढ़
नव सोच नई विरासत रचने करने का माद्दा
तुममें क्यों नहीं आया ?
2007