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12 Feb 2024 · 1 min read

दहेज

निर्णय लें सभी पिता, माने इस रिवाज को।
दहेज दे के संवारे नहीं, बेटी के आज को।
न दें लें कभी, बस इतनी सी कसम खालें ।
सदियों से चली आ रही, रिवाज बदल डालें।
बदली रिवाज दहेज की, मुश्किलें मिट जायेंगी।
न दहेज के ताने बेटी, फिर सुसराल में खायेगी।
पढ़े लिखे बेटे अगर, बेटी भी अब अनपढ़ नहीं।
सभ्य समाज की कुप्रथा है, शान का दर्पण नहीं।
न अमीरी को आंकिये, दहेज की दिखाबट से।
समस्या फैली अपराध की, इसकी सजावट से।
मजबूरी गरीब बाप की, बेटी बनी अभिशाप सी।
है विवश वो झेलने को, बेमेल विवाह संताप सी।
मिटे ये कुप्रथा सदा ही, समाज के ही हाथ है।
नहीं मिटेंगी जड़ से अगर,समाज इसके साथ है।

स्वरचित एवं मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश

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