दलितो की हुंकार
काटो सवर्ण जाति के शिराओ को ।
देखो उसमे क्या खून नही ।
दलितो की भांति सताओ उनको ।
देखो क्या उनमे जुनून नही ।
रखो भूखे उनको ।
देखो क्या उनमे भूख नही ।
दूसरो के साथ ऐसा व्यवहार ।
क्यो करते हो जो तुम्हे खुद ही पसंद नही ।
ये जात -पात है ये ढकोसला ।
संत रविदास ने यही बोला ।
जात-पात पूछे नही मौला ।
जा भजै उनको सब कुछ मिला ।
दलितो को सताने का गिला ।
ब्राह्मणो ने चलाया ये सिलसिला ।
जात -पात को सीचा कोई ।
तो वो ब्राह्मण जात ही ।
ये सब तो उन्ही ने पाला ।
गर कोई शूद्र सुन ले उनके धर्म ज्ञान को ।
तो उसके कर्ण मे पिघलाकर सीसा डाल देते थे ।
क्या बीतती रही होगी उनपर ।
सिहर कर आधी आत्मा बाहर निकल जाती रही होगी ।
छू लेने से क्या ब्राम्हण हो जाते मलीन ।
ऐसा होता है बंधुआ मजदूरी करवाकर ।
अन्न खाकर क्यो न हुए लवलीन ।
वंचित रखो उनको उनके अधिकारो से ।
देखो क्या पाने के लिए उनमे ।
धधकती आग नही ।
बंद करवा दो बोलना उनका ।
देखो उनमे क्या राग नही ।
फूंक दो घर उनका ।
कर दो विहीन देखो क्या ।
उनमे विराग नही ।
रख दो सवर्ण जाति को बिन वायु मे ।
देखो क्या उनमे श्वास नही ।
कह दो ये अन्याय है ।
देखो क्या उनमे विश्वास नही ।
हत्या कर दो उनकी ।
दलितो की भांति ।
देखो वे क्या लाश नही ।
क्यो सताते हो क्या तुम जताते हो ।
हममे से कोई शेर नही ।
बाबा साहेब जब हुए पैदा ।
तो किसी भी पाखंडी की खैर नही ।
अरे ! बाबा साहेब को भी न छोङा ।
इन जात-पात के बंधन ने ।
इस पाश मे तो बध गए ।
देख दलितो के क्रंदन को ।
दलित कही पर न छू दे ।
भागते थे पवित्र चन्दन से ।
दो महाद्वीपो मे बढे बाबा ।
अंत मे आए लंदन से ।
जाति -पात से मुक्त कराया ।
इस देश के मनु नंदन ने ।
करते रहे लङते रहे ।
दलितो के विरूद्ध लङाई।
सुख क्या होता ।
बाबा ये तो कभी न जान पाए ।
दो-दो पत्नियां मर गई।
मर गये मां बाप भाई ।
फिर भी करते रहे पढाई ।
किसके लिए इस देश मे ।
व्याप्त जात -पात के बंधन की रुसवाई ।
अंधविश्वासो के चक्कर मे मत फसो ।
किसी भी तथ्य को ।
तार्किकता की कसौटी पर कसो ।
फिर किसी तथ्य को चसो ।
दलितो ने गम झेला कम नही ।
अब कोई उनको सताए दम नही ।
सब कुछ बदल जाएगा ।
अपनी मानसिकता बदलो तो सही ।
पीङा दो उन सवर्ण जाति को ।
देखो क्या वे संवेदनशील नही ।
रखो नीर से दूर उनको ।
देखो उनमे क्या प्यास नही ।
कर दो उनके टूकङे -टूकङे ।
देखो क्या उनमे क्या मांस नही ।
क्या कहते और करते हो भाई ।
जैसा लगता तुम्हारे हृदय मे ।
कोई दया का कोना खाली नही ।
क्यो कष्ट देते हो उनको ।
जैसा लगता उनके जीवन मे हरियाली नही ।
क्यो करते हो रंग रूप का भेद ।
जैसे लगता कोई काला नही ।
क्यो भोंकते हो जात-पात का भाला ।
ऐसा क्यो फंसाते हो जैसे मकङी का जाला ।
हम भी स्वच्छ, निर्मल है ।
कोई बहता हुआ नाला नही ।
क्यो बुनते हो ऐसे जाला ।
जिसमे फंसे खुद ही ।
सब कुछ बदल जाएगा ।
अपनी मानसिकता बदलो तो सही ।
Rj Anand Prajapati