दर्द
हम रूठे दिलों को मनाने में रह गये,
गैरों को अपना दर्द सुनाने में रह गये ।
मंजिल हमारी, हमारे करीब से गुजर गयी,
हम अपनों को पहचानने में रह गये ।
डां. अखिलेश बघेल
दतिया (म.प्र.)
हम रूठे दिलों को मनाने में रह गये,
गैरों को अपना दर्द सुनाने में रह गये ।
मंजिल हमारी, हमारे करीब से गुजर गयी,
हम अपनों को पहचानने में रह गये ।
डां. अखिलेश बघेल
दतिया (म.प्र.)