दर्द बाहर निकले लगा
है जो सीने मे दर्द भरा
लिखने बैठा तो बाहर निकलने लगा |
बरस बीत गए इसे संजोते संजोते
बचपन मैं थोड़ा कम हो जाता था रोते रोते |
आज सुनी जो एक दास्ताँ तो भर आया गले तक
रोने को जी करता है कुछ पल देर तलक |
इस कलम की स्याही भी अब फीकी पड़ने लगी
दर्द से कलेजे की आंते है जलने लगी |
अश्क़ो से ये शफा भी गिला हो चला
लिखने बैठा जो आज दर्द बाहर निकले लगा |