दर्द-ए-सितम
ग़ज़ल
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खा अभी क़सम
दूर हो भरम
छोड़ दूँ सभी
दैर-ए-हरम
प्यार में मिला
दर्द-ए-अलम
खो गई कहीं
लफ्ज़-ए-क़लम
और मत करो
दर्द-ए-सितम
यूँ बहक रहे
रोक लो क़दम
आज भी हूँ मैं
अब्र-ए-क़रम
दैर-ए-हरम=मधुशाला
दर्द-ए-अलम= पीर,विरह
लफ्ज़ -ए-कलम=शब्दों की जादूगरी
अब्र-ए-करम=बादल जैसा मेहरबान
डा .सुनीता सिंंह ‘सुधा’
12/4/2023
वाराणसी,©®