दम तोड़ती भुखमरी
आसरा हो जो तेरे दीदार का
है इलाजे मर्ज़ इस बीमार का
पा बुलन्दी शोहरतों के रास्ते
करना मत सौदा मगर क़िरदार का
हौसला ग़र होगी हासिल जीत भी
शोक क्या हरदम मनाना हार का
हर दफ़ा साहिल पे डूबी कश्तियाँ
मिट गया डर दिल से अब मझधार का
हाशिये में तोड़ती दम भुखमरी
हाल अब बाज़ार सा अख़बार का
सुशान्त वर्मा