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24 Aug 2024 · 1 min read

दण्डक

मनः संवाद—-
24/08/2024

मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl

झूठे हैं सजना मेरे, जान गई मैं री सखी, सौतन से है प्रीत।
मुझसे पहले का वादा, पता चला सब ढ़ोंग था, झूठे सारे गीत।।
मैं समझूँ या समझाऊँ, प्रेमनगर का सच कहो, ऐसी होती रीत।
मन का मंदिर है टूटा, देव पराये हो गये, होता यही प्रतीत।।

प्रीतम प्यारे रूठे हैं, कोई अपनी युक्ति दो, माने मेरी बात।
पहले ऐसा हुआ नहीं, बिन बोले रहते नहीं, लगे बहुत अखियात।।
झाड़ा फूका देख लिया, कैसा टोना टोटका, जागे सारी रात।
संग सदा मैं लगी पिया, आगे पीछे हो रही, नयन करे अँसुपात।।

— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)

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