दउरिहे भकोसना
फोकटे में दाल चाउर सगरो बाँटाता,
दउरिहे भकोसना ले आवे सभे जाता।
अगलगि में बटात बाटे कपड़ा आ रासन,
बहुते कुछ देत बाटे दुखियन के शासन,
दुखियन से सुखियन के बेसिये दियाता-
दउरिहे भकोसना ले आवे सभे जाता।
हरदम ना मिली अइसन नीमन सुतार रे,
दउरताटे लोग तनी होनेहो निहार रे,
लूटला में लाज का बा सब जघे लुटाता-
दउरिहे भकोसना ले आवे सभे जाता।
देहि धाजा पवले तें बाड़े सीधा-साधा,
येहि से जे काम करबे हो जइबे आधा,
कइला के गरजे का बा सुखले भेंटाता-
दउरिहे भकोसना ले आवे सभे जाता।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 04/05/2000