थोड़ा रुक ही जाते…..
थोड़ा रुक ही जाते
हम आये तो थे
धड़कने तेज थीं मगर
कदम डगमगाये तो थे
गीली मिट्टी सनी थी
जो तेरे पैर में
उन राहों पर आँसू
बहाये तो थे
थोड़ा रुक ही जाते
हम आये तो थे
हम तड़पते रहे
मिलन की आस में
दिल तुम्हारा पड़ा था
मेरे पास में
क्यूँ रुसवा हुए
क्या शिकवा हुए
वादे किए जो
निभाए तो थे
थोड़ा रुक ही जाते
हम आये तो थे
अब तो दिखता नहीं
दिन है या रैन है
जिस्म बेजान है
रूह बेचैन है
गूंजते हैं फ़िज़ाओं में
नग्मे वो प्यार के
मिलके हमने कभी
साथ गाये जो थे
थोड़ा रुक ही जाते
हम आये तो थे
नहीं चाहा कभी
इश्क़ बदनाम हो
इन सूखे लवों पर
बस तेरा नाम हो
साँस थम जाये तो
लाना सूखे वो गुल
किताबों में कभी हमने
सजाए जो थे
थोड़ा रुक ही जाते
हम आये तो थे
डा0 शेखर सुरेंद्र राजपूत