थोड़ा अंदर का सच गृहिणियों का
ये गृहिणियाँ थोड़ी नही पूरी पागल सी होती हैं
ये रोज़ अपनों को रच – रच कर
प्यार से खिलाती हैं
घर का सारा हिसाब- किताब संभालती हैं
पर सामने वाले के माँगने पर
अपने एक निवाले का हिसाब नही दे पाती हैं ,
क्योंकि….
ये गृहिणियाँ थोड़ी नही पूरी पागल सी होती हैं
जी भर कर करती हैं मरती हैं
पर पैसे नही कमाती हैं
ना इनको इज़्जत मिलती है ना प्यार मिलता है
उसके बावजूद इनकी तरफ से भरपूर दूलार मिलता है ,
क्योंकि….
ये गृहिणियाँ थोड़ी नही पूरी पागल सी होती हैं
सब कुछ सह कर भी ये खिलखिलाती हैं
कहीं दर्द ना दिख जाये ये सोच घबड़ाती हैं
पूरा घर संभाल खुद पर जी भर कर इतराती हैं
पर अपने ही घर में अपनों की चालों को समझ नही पाती हैं ,
क्योंकि….
ये गृहिणियाँ थोड़ी नही पूरी पागल सी होती हैं
इनको सीधा समझना सबसे बड़ी बेवकूफी होती है
अपने अंदर गर्म लावा समेटे
ये एकदम शांत ज्वालामुखी सी होती हैं
कब फटेगीं किसी को कोई खबर नही होती है ,
क्योंकि….
ये गृहिणियाँ थोड़ी नही पूरी पागल सी होती हैं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 12/01/2020 )