तड़पन
मुलाकातें जब से बंद हुयी
सगे संबंधी भी अनजान हुए
यारी दोस्ती भी धरी रह गयी
लगता है अब तो रमजान हुए
रोज़ जिनसे मुलाकातें होती थी
एक बार नही सुबह शाम होती थी
पल पल हर।पल तरसते हैं अब
महीनों बीत गए उनसे मुलाकात हुए।1।
यारी दोस्ती भी धरी रह गयी
लगता है अब तो रमजान हुए
जान थे जो हमारी, ना मिलना, मजबूरी हो गयी
रोज़ गले मिलते थे जिनसे, जिंदगी ही दूरी हो गयी
पास ना आना बातें ना करना
यूँ छुप छुप कर मिलना ना आसान रहे।2।
यारी दोस्ती भी धरी रह गयी
लगता है अब तो रमजान हुए
रोज़ सुबह उठ कर नहाना धोना
तैयार होकर कार्यालय को जाना
काम की चिक चिक बॉस की किट किट
महीनों बीत गए, इस तरह परेशान हुए।3।
यारी दोस्ती भी धरी रह गयी
लगता है अब तो रमजान हुए
आओ चलो फिर एक कॉल तो कर लें
सुनना सुनाना कहना कहलाना ही कर लें
मिलना जुलना मुलाकातें तो फना हो गई
गली मोहल्ले अब तो पार्क भी वीरान हुए।4।
यारी दोस्ती भी धरी रह गयी
लगता है अब तो रमजान हुए
वीर कुमार जैन
12 मई 2020 उत्पत्ति दिनांक
24 जून 2021