तो ग़ज़ल हो
21 21 21 21
रूठ जाओ तो ग़ज़ल हो
खिलखिलाओ तो ग़ज़ल हो
तुम खड़े हो दूर कबसे
पास आओ तो ग़ज़ल हो
तेरे ग़म में रो रहा हूँ
मुस्कुराओ तो ग़ज़ल हो
इश्क़ में है बेक़रारी
चैन पाओ तो ग़ज़ल हो
कल का एतबार क्या है
आज आओ तो ग़ज़ल हो
दिल में मेरे आज क्या है
जान जाओ तो ग़ज़ल हो
मेरे जैसा गीत कोई
गुनगुनाओ तो ग़ज़ल हो
यार फिर से ज़िन्दगी में
लौट आओ तो ग़ज़ल हो
छोड़ भी दो कड़वी बातें
भूल जाओ तो ग़ज़ल हो
काल पर निशान अपने
छोड़ जाओ तो ग़ज़ल हो
‘मीर’ मेरा रहनुमा है
मान जाओ तो ग़ज़ल हो
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*मीर—खुदा-ए-सुख़न मीर तक़ी मीर।
*रहनुमा—राह दिखाने वाला, पथप्रदर्शक।