…तो हम दोनों थे
ब्याह के आयी थी,
तो हम दोंनो थे।
रात शरमाई थी,
तो हम दोनों थे।
फलक से उतर कर,
बिस्तर पर सहमा सा बैठा ।
घूंघट में चांद देखा था,
तो हम दोनों थे।
साथ साथ निकले थे,
जानिब ए मंजिल।
हर कदम साथ निभाया,
तो हम दोनों थे।
बेटी बेटे चल पड़े,
अपने अपनों को लेकर।
घर का माहौल हुआ सूना,
तो हम दोनों थे।
घर में तुम खटती,
बाहर मैं हर दिन।
शाम को थके दिखते,
तो हम दोनों थे।
श्वेत से हुए तेरे गेसू,
मेरी आंखों पर लगा चश्मा।
मायूस पसरी आस पास,
तो हम दोनों थे।
मेरे हाथ को बना कर तकिया,
आराम कर लो थोड़ा।
सुख दुख में साथ का हुआ वादा,
तो हम दोनों थे।
– सतीश शर्मा सृजन