तोहमत
तुम्हारे इश्क़ मे खुद को फऩा कर दिया,
कितनी आसानी से तुमनें बेवफ़ा कह दिया!
बताकर दामन ए पाक भरी महफिल में,
इश्क़ ए रूहानियत ए रब्बा कह दिया!
हँसकर क्या बोल दिए जरा किसी से,
भूलकर तबी’अत ए रिफाकत दगा कह दिया!
लगाकर इल्ज़ाम ए मुहब्बत पर इसकदर,
गुनाए ए संगीन दुश्वारियां बता सगा कह दिया,
कर तसब्बुर राबिता ए सराब ओ हयात का,
मेजबाँ ए आशिकी ए कद्र दाँ नफ़ा कह दिया!
रोज ओ शब ए महरूमियत कहाँ जाऊँ ले “अभिधा”,
सहन न कर सकें तो “ऐ खुदा” अलविदा कह दिया!
-अर्चना शुक्ला”अभिधा”