तेवरी केवल कैमरे की कला नहीं + निरंजन कुमार ‘निराकार’
—————————————–
साहित्य ने सदैव सामाजिक स्थितियों के अनुसार समय की मुँहजोर हरकतों को आकने के साथ-साथ सामाजिक बदलाव की पृष्ठभूमि भी तैयार की है। काव्य-कला की दृष्टि से नयी कविता, अकविता और अब तेवरी विधा की आन्दोलनात्मक हलचल जनमानस में चेतना लाने के लिये सुखद परिणाम प्रस्तुत कर सकती है, बशर्ते इसे यथार्थमय दृष्टिकोण के साथ जन-पीड़ा से जोड़ने का प्रयास किया जाये।
यदि तेवरी में जनता की समस्याओं, परेशानियों को अभिव्यक्ति देने के लिये भाव-भाषा का खुलकर प्रयोग किया जाये तो तेवरी केवल कैमरे की कला होने के बजाय देश-समाज तथा व्यक्ति को उनके मौलिक अधिकारों के लिये किये गये संघर्ष को और तेजतर कर सकेगी। इसके लिये तेवरी रचनाकारों को नुक्कड़, चैराहों पर साहस के साथ कवि सम्मेलन आयोजित करने पड़ेंगे।
ग़ज़ल के निकट की प्रभावी स्वतन्त्र विधा तेवरी का भाषायी पैनापन, तेजतर्रार रवैया, विकृतियों, विसंगतियों पर हथियार की तरह इस्तेमाल, बिगड़ती स्थितियों से निपटने का दबदबा तभी कारगर हो सकता है जबकि इसके रचनाधर्मी अपनी मान्यताओं की रक्षा हेतु हर तरह के खतरों ;खासतौर से जो परम्परागत साहित्य से उत्पन्न हुए हैं, को झेलने के लिये अपने भीतर सामर्थ्य और साहस रख सकें।
तेवरी का किसी वाद या खेमे से न जुड़ना इसके उज्जवल भविष्य का संकेत है तथा जीवन से हर तरह मात खाये हुए व्यक्ति के हित में एक भरोसेमन्द आवाज है। इसकी आवाज में नयी पीढ़ी का बल तथा भविष्य की चमक एकाकर होकर सर्वत्र नया रंग- नयी खुशबू बिखेर सकती है।