तेवरीः साहित्य के नए तेवर + गिरि मोहन ‘गुरु’
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तेवरी वस्तुतः पूँजीवाद एवं सामन्तवाद से उपजी शोषक मानसिकता, व्यक्ति-परक स्वार्थ में डूबी राजनीति एवं अन्धी परम्परा की पोषक विचारधारा के खिलाफ ओजस्वी, तेजस्वी स्वर ही नहीं, बल्कि आक्रोश परिपूर्ण प्रखर स्वर भी है। समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अत्याचार, अनाचार, पापाचार, हाहाकार की जड़ों पर सैद्धान्तिक प्रहार हेतु काव्यात्मक हुन्कार है तेवरी।
तेवरी के नए-नए प्रयोग, ‘तेवरी हिन्दी ग़ज़ल का एक रूप है’ इस मान्यता को बड़ी जल्दी झूठा साबित कर देंगे।
सन्नाटों के लिये हुन्कार तेवरी
सड़ी-गली मानसिकता का उपचार तेवरी।
साहित्यिक गति-प्रगति नए तेवर की जननी
स्वार्थ और अन्याय हेतु हथियार तेवरी।