तेवरीः एक संकल्प-चेतना की अभिव्यक्ति + शिवकुमार थदानी
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तेवरी-काव्य का मूल स्वर आपातकालीन स्थिति एवं आतंककारी व्यवस्था को संबोधित है, जिसमें व्यवस्था तंत्र के क्रूर अमानवीय आचरण की ओर संकेत है और एक संकल्प-चेतना की अभिव्यक्ति की उपस्थित रहती है। इनमें आत्मग्लानि, भय, आत्म-विडम्बना, आतंक एवं विसंगति के विचार इन्हीं सन्दर्भों से उत्प्रेरित रहते हैं।
तेवरी का तेवर ऊपरी तौर से देखने पर सामाजिक संस्थाओं, पद्धतियों और व्यवस्था-तन्त्र को संबोधित है। सामाजिक हित के भाव को व्यक्त करने वाला आत्मपरक अनुचिंतन भाव-उन्मेष ही इसमें महत्वपूर्ण होता है। मगर तेवरीकार अपनी सामर्थ्य का परिचय देकर सामाजिक संघर्ष में भागेदारी का एहसास भी उपजाता है।
‘तेवरी का संदर्भ जि़न्दगी की बुनियादी जरूरतों के लिये किया जाने वाला संघर्ष है, जिसकी रग-रग में पूँजीवादी अमानवीयता के प्रति क्रोध एवं असह्य घृणा परिव्याप्त दिखती है। एक अन्य अर्थ में तेवरी को चारों ओर व्याप्त सड़ांध को नष्ट करने के लिये एक व्यवहारिक संकेत माना जाता है।