*** ” तेरे साये में गुजरती जिंदगी……! ” ***
## कहती है कुछ …..! ,
ये नदी , नाले और ये चमन-झरनें ।
हम सब हैं , प्रकृति की सगी बहनें ।।
हमें ना बिखरो तुम ।
हमें ना छेड़ो तुम ।।
ना हो अपनों के , अपना पन से गुम ।
विकास के नशे में तुम ।।
रुक , ठहर , कुछ सोच जरा ।
नदी है , नाले हैं , झरनें हैं और ये प्रकृति ;
तब ये जीवन है हरियाली से आच्छादित और हरा-भरा ।।
## छत और छतरी , केवल कुछ मौसम का सहारा होता है।
प्रकृति तो हर पल और हर मौसम का सहारा होता है।।
सजा लो जरा इसे ।
अपना लो जरा इसे ।।
फिर मिट जायेगा , तपन की जलन ।
और सजी रहेगी , अपनी धरती-गगन ।।
ओस की बूंद सी है , जिंदगी का सफर।
जो कभी फूल में , तो कभी धूल में ;
करती है अपनी गुजर-बसर ।।
## दो पहियों से (सुख-दुख) चलने वाला जीवन रथ ;
प्रकृति के संग चल , प्रकृति के छाँव-पथ ,
सुकुन से गुजरने वाला है।
बीते पल की क्या बात करें ,
अब वह लौट नहीं आने वाला है ।।
वर्तमान जो , ” आज ” बनकर है खड़ा ;
वह भी पल-पल की काल खण्डों में सरकने वाला है ।
चल आ बात करें , उस पल की , उस कल की ;
जो ” आज ” बनकर सजने-संवरने वाला है।।
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
२१ / ०३ / २०२०