तेरे लिखे में आग लगे / MUSAFIR BAITHA
तेरे लिखे में
अगर दुःख है
दुःख मगर सबका है
तो तेरे लिखे में आग लगे
सबका दुःख कोई ओढ़ नहीं सकता
ओढ़ना भी नहीं चाहिए
सब में से कुछ कुछ
कुछ को तो ना-हक़
दुःख देने वाला निकलेगा ही
किसी के ना-हक़ सुख में
साथ होना भी
जायज़ नहीं है बल्कि
सबका होना
सबके सुख दुःख में शामिल होना
दरियादिल होना नहीं है
अवसरवाद में रमने का
दूसरा नाम है यह!