तेरा यह आईना
रोक देता है मेरे कदमों को,
आगे बढ़ने से और ,
लौट आता हूँ वापस मैं,
अपने पुराने मूढ़ में,
क्योंकि शीशे की तरह है,
तेरा यह आईना।
बेदाग पवित्र तेरा यह आईना,
चांदनी में सितारों के संग,
चमकता चांद सा तेरा मुखड़ा,
देखता हूँ जिसको मैं,
अकसर चांदनी रात में,
देखता हूँ खुद को मैं इसमें।
तरसता हूँ हमेशा मैं,
तेरे इस मुखड़े को देखने को,
तुझको छूकर अपनापन देखने को,
तेरे लबों से मोहब्बत के शब्द सुनने को,
और बनाता हूँ तेरी तस्वीर मैं,
देखकर तेरे आइने को।
कोसता हूँ मैं अपनी तकदीर को,
क्यों तलबगार हूँ मैं तेरा,
आता है मुझको गुस्सा बहुत,
दोनों के बीच इस दूरी पर,
कभी तो मन करता है,
कि फोड़ दूँ तेरा यह आईना,
लेकिन मुस्करा देता है मेरा चेहरा,
सच में देखकर तेरा यह आईना।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847