तू है शक्ति
नारी वह शक्ति है बढ़ाती
जो हर कुल हर वंश।
त्याग मयी यह मूर्ति देकर
अपने तन का अंश।
करो प्रयत्न कि तुम्हारी ओर से
कभी न उसको कोई दंश।
वरना उस पवित्रात्मा का ताप
कर सकता है सब कुछ विध्वंस।
नारी तुम शीतल सरिता हो
जीवन के शुष्क मरुस्थल म