तू और मैं
फिर ठहर गया है मेरे ज़हन में आकर,
तेरा ख्याल मुझे छोड़ कर जाता क्यों नहीं l
फिसल गया था रेत सा कभी हाथों से मेरे,
वही वक़्त घड़ी में लौट कर आता क्यों नहीं l
हक़ नहीं तुझे याद करने का भी मुझे,
इस बात पर मुझे यकीं आता क्यों नहीं l
कोई चाहत कोई हसरत कोई अरमान नहीं बाक़ी,
फिर इंतज़ार को मेरे सुकून आता क्यों नहीं l
हर रोज़ मिटाती तो हूँ उसे खुद से मगर,
बेहिसाब है मुझमें ये हिसाब मुझे आता क्यों नहीं l
कोशिशे तमाम की भूल जाने की तुम्हें,
मेरी कोशिशों को आराम आता क्यों नहीं l