तूफ़ां में किस तरह से भी जाया न जाएगा
तूफ़ां में किस तरह से भी जाया न जाएगा
जाते अगर तो लौट के आया न जाएगा
दिल का अगर ये मैल हटाया न जाएगा
उल्फ़त के फिर नगर को बसाया न जाएगा
ममता का ये हिसाब लगाया न जाएगा
कोशिश तमाम करके चुकाया न जाएगा
नफ़रत मिटे तमाम रहे प्यार इसलिए
उल्फ़त का ये चराग़ बुझाया न जाएगा
रिश्तों का हो भवन कि हो महलों की बात फिर
आधार बिन मकान बनाया न जाएगा
सुन ली है काटने की परिन्दों ने वो शजर
अब उस पे घौंसला तो बनाया न जाएगा
महफ़िल में और लोग कभी भी न आयेंगे
“आनन्द’ को अगरचे बुलाया न जाएगा
डॉ आनन्द किशोर