तुम हो
क़ज़ा भी तुम हो हयात भी तुम हो
डायरी के पन्नों पर उतरे लफ्ज़ भी तुम |
सर्द मे खिड़की से आती मीठी धुप सी तुम
खलिहानो मे आयी नयी फसल भी तुम हो |
तुम ही तो हो सपनो से भरे नयनो के नमकीन पानी मे
देर रात की करवटों मे दबी सिसकियों मे भी तुम हो |
बस एक ही ख्वाईश है मेरे हमनशींं
ये प्यार ना कम हो एक दूसरे में हम गुम हो |
क़ज़ा – Death , हयात – Life
— हरदीप भारद्वाज