तुम पावस में घर आ जाना
जाते हो परदेस पिया, तुम पावस में घर आ जाना
प्रेम से भीगी वर्षा ऋतु को, साजन भूल ना जाना
तुम पावस में घर आ जाना
बिजली कड़के बादल गरजे, नभ में बादल छा जाएं
घनघोर घटाएं प्रिया विना,परदेस तुम्हें डरा जाएं
दादुर मोर पपीहा बोले, नींद कहीं उड़ उड़ जाए
पड़ें जब बूंदें पानी की,बादल राग सुना जाए
तुम सीधे घर को आ जाना, सैंया भूल न जाना
तुम पावस में घर आ जाना
जब धरती पर हरियाली हो, घनघोर घटाएं काली हो
नयनों में प्रेम गुलाबी हो, और रातें मतवाली हों
जब पड़े फुहारें सावन की, साधन न आवन जावन की
तुम पंछी बन उड़ आना, साजन भूल ना जाना
तुम पावस में घर आ जाना
जब पहनी चुनर धानी हो, और मेहंदी की लाली हो
सोलह श्रृंगार कर राह तुम्हारी, देख रही दरबाजे हो
तुम इंतजार न करवाना,जल्दी से घर को आ जाना
जिय की जलन मिटा जाना, पावस में घर आ जाना
तुम पावस में घर आ जाना
भीग जाएं सब शैल शिखर, रूप धरा का आए निखर
ताल तलैया झील सरोवर,कमल पुष्प से जांए भर
वहते हों झरने निर्झर, नदियां इठलाएं जल भर भर
जब दिल में याद पुरानी हो, आंखों में प्रेम का पानी हो
मनके मंदिर मेंआ जाना, तनमन की प्यास बुझा जाना
तुम पावस में घर आ जाना
जब वन वन हरियाली हो, मधुबन की छटा निराली हो
आसमान में इंद्रधनुष, गाती पुरवइया मतवाली हो
भीगी भीगी रितु सावन की, पिया भूल न जाना
तुम सावन में घर आ जाना
जब सूनी सेज न पलक लगे, रह रह कर याद सताए
भूली बिसरी यादों में,मन पंछी उड़ उड़ जाए
तुम सपनों में आ जाना,पल दो पल साथ विता जाना
तुम पावस में घर आ जाना
अंधियारी नम रातों में, जब भी बिरहन कोई सिसके
विरह गीत के सुमधुर स्वर, जब कानों में आ धमके
बिन देर लगाए आ जाना, मुझ विरहन को न तड़फाना
तुम बारिश में घर आ जाना, पावस में घर आ जाना
सुरेश कुमार चतुर्वेदी