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23 Jul 2021 · 1 min read

तुम ना आए….

उग आया लो चाँद गगन में,
तुम ना आए।
खोई तुममें रही मगन मैं,
तुम ना आए।

याद करो तुम ही कहते थे,
साँझ ढले घर आ जाऊँगा।
निकलेगा जब चाँद चौथ का
मैं तुमको गले लगाऊँगा।
लो, आया वो चाँद गली में,
तुम ना आए….

मन पर पत्थर रख रो-रोकर,
हमने सब त्यौहार मनाए।
जब भी खटका हुआ द्वार पर,
लगा हमें कि तुम ही आए।
जीते रहे हम इसी ललक में,
तुम ना आए….

बिना तुम्हारे गम सहकर भी,
हमने जग के फर्ज निभाए।
अवधि गिन-गिन जिए रहे हम,
जीवन के सब कर्ज चुकाए।
देखा तुमको चाँद – झलक में,
तुम ना आए….

बड़ी खुशी से संग सखी के,
हमने सब सिंगार सजाए।
वेणी गूँथी, माँग सजाई,
जड़े सितारे, हार बनाए।
उलझ गया लो चाँद अलक में,
तुम ना आए….

गुजरीं कितनी पूरनमासी,
कितनी घोर अमावस आयीं।
शिशिर-हेमंत-बसंत-पतझर,
षड्ऋतु आतप-पावस छायीं।
आँसू आ-आ रुके पलक में,
तुम ना आए!
डूब गया लो चाँद फलक में
तुम ना आए !

– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“सृजन प्रवाह” से

Language: Hindi
Tag: गीत
7 Likes · 8 Comments · 694 Views
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