तुम्हारे इंतिज़ार में ……..
तुम्हारे इंतिज़ार में ……..
देखो न
कितने सितारे भर लिए हैं मैंने
इन आँखों के क्षितिजहीन आसमान में
तुम्हारे इन्तज़ार में ।
गिनती रहती हूँ इनको
बार- बार सौ बार
तुम्हारे इंतिज़ार में
तुम क्या जानो
घड़ी की नुकीली सुइयाँ
कितना दर्द देती हैं ।
सुइयों की बेपरवाह चाल
हर उम्मीद को
बेरहमी से कुचल देती है
अन्तस का ज्वार
तोड़ देता है
घुटन की हर प्राचीर को
और बहते- बहते ठहर जाता है
खारी बूँद की शक्ल में
ठोड़ी पर
तुम्हारे इंतिज़ार में
देखो
विलम्ब न करो
छोड़ न दें साँसें
कहीं काया कुटीर को
तुम्हारे इंतिज़ार में
सुशील सरना / 9-1-24