तुम्हारी याद
आम की डाली जो सूखी है
अब यहां पिक या सीखी नहीं आते
यह घाट सुने हैं जहां हंसी बहुत कुछ कहा करती थी
सब को हंसाती थी और हंसती थी
आज आंसुओं के कोष पर स्वप्न देख रहा हूं पलकों में भर कुसुमो की क्यारी बोता हूं
इस उदास पथ पर पतझड़ छाया गहरी है
आज सुनी संध्या में तुम्हारी याद गहरी है….