तुम्हारी तुम जानो
तुम्हारी तुम जानो
तुम में हम और हम में तुम हो
पल भर तो दिल में जरा ये ठानो
करीब कितने हो तुम मेरे दिल के,
हमारी तो हम जाने, तुम्हारी तुम जानो,
रोज़ देते हो दस्तक दिल को हिलाते हो
आते हो याद वक्त-बे-वक्त रुलाते हो
कुछ ऐसा महसूस कभी करो तो जानो
हमारी तो हम जाने, तुम्हारी तुम जानो
बदलते मौसम की चंचल शौख अदा
बयान करती है दास्ताँ तेरे हुस्न की
अगर कभी हवाओ के रुख को पहचानो
हमारी तो हम जाने, तुम्हारी तुम जानो,
सच है के हम गैर सही नजरो में उनकी
फिर भी कोई तो रिश्ता बाकी है जहान में
भरोसा अपने दिल पे कभी करना तो जानो
हमारी हम जाने, तुम्हारी तुम जानो
—–:: डी. के. निवातियाँ ::——-