तुझपे आया दिल मिरा बे-सबब नहीं
मुस्कुरा दे और कुछ मतलब नहीं
तुझपे आया दिल मिरा बे-सबब नहीं
कह रही ऑंखें जो लब से बोल दो
है नज़र ख़ामोश लेकिन लब नहीं
कर न बैठूँ ख़ुदकुशी तन्हाई में
ज़िन्दगी का कोई मक़सद अब नहीं
ज़ात क्या है, धर्म क्या है, पूछ मत
इश्क़ करने वाले का मज़हब नहीं
हर घड़ी सांसों में थे तुम ही बसे
दिलरुबा तुम याद आये कब नहीं