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3 Nov 2021 · 1 min read

तुझको तुम्है बताने की और जरूरत क्या

मन के बहते तलाब में बैठी हंश जैसी हो
चकमक करती धार तरंगों को उस किरण पुंज जैसी हो
तुझको तुम्है बताने की और जरूरत क्या
नय तौर में भी अंदाज एक देसी हो

बाग से आती खुशबु में गुलाब जैसी हो
पंखुरियो को ओढ़े एक नयाब जैसी हो
तुझको तुम्है बताने की और जरूरत क्या
नय तौर में भी एक ख्याल देसी हो

बड़ी मुद्दतो बाद पूछा
हाले दिल कैसी हो
मेरे लब्ज तो नहीं है अब चुभते
नजरों में महज कैद आगोशी हो
तुझको तुम्है बताने की और जरूरत क्या
संपूर्ण विरासत ही तेरी, तेरी ही ताजपोशी हो

ये रस्मो रिवाज, दस्तुर् जमाने का है
तुम कहाँ दोषी हो
सर चढ़ती हो बेवजह ही
बैचैन,बेसुध सरगोशी हो
तुम्है तुझको बताने की और जरूरत क्या
मधुशाला से बढ़कर, मदहोशी हो।

विक्रम कुमार सोनी – स्वरचित

2 Likes · 2 Comments · 229 Views
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