तिल का ताड़
वर्चस्व स्थापित करना ही भगवता है,
निसर्ग के दुश्मन
और धार्मिक
कभी हो पाया है.
भक्त पर झलक
और उसके कृत्य
ये साबित करते आये है.
वह हक को ध्यान में रखे बिन,
माँगे बिना
पानी की जरूरत मानने की बजाय,
आराध्य की स्तुति के उल्लेख करता है.
मौकापरस्त
सब भूलकर
देखने समझने की बजाय
वो प्रस्तुति देता है
जिसका वो पीडित है.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस